वरलक्ष्मी व्रत 2020 | VarLakshmi Vrat Katha Hindi PDF
वरलक्ष्मी व्रत २०20| VarLakshmi Vrat 2020
वरलक्ष्मी व्रत श्रावण शुक्ल पक्ष के दौरान आखिरी शुक्रवार को मनाया जाता है और राखी और श्रवण पूर्णिमा के कुछ दिन पहले आता है।
Varalakshmi Vrat is celebrated on the last Friday of Shravan during the Shukla Paksha.
31वाँ
जुलाई 2020
Friday / शुक्रवार
वरलक्ष्मी व्रतम् शुक्रवार, जुलाई 31, 2020 को
सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (प्रातः) – 06:59 AM से 09:17 AM
अवधि – 02 घण्टे 17 मिनट्स
वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (अपराह्न) – 01:53 PM से 04:11 PM
अवधि – 02 घण्टे 19 मिनट्स
कुम्भ लग्न पूजा मुहूर्त (सन्ध्या) – 07:57 PM से 09:25 PM
अवधि – 01 घण्टा 27 मिनट्स
वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि) – 12:25 AM से 02:21 AM, अगस्त 01
अवधि – 01 घण्टा 56 मिनट्स
वरलक्ष्मी व्रत विधि | VaraLaxmi Vrat Vidhi
वरलक्ष्मी व्रत पूजा धन और समृद्धि की देवी की पूजा करने के लिए महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। वरलक्ष्मी, जो भगवान विष्णु की पत्नी हैं, देवी महालक्ष्मी के रूपों में से एक हैं। वरलक्ष्मी का दूधिया महासागर मैं जन्म हुआ था, जिसे किशीर सागर भी कहा जाता है।
यह माना जाता है कि देवी का वरलक्ष्मी रूप वरदान देता है और अपने भक्तों की सभी इच्छाओं को पूरा करता है। इसलिए देवी के इस रूप को वर+ लक्ष्मी’ के रूप में जाना जाता है। देवी लक्ष्मी का वो रूप जो वरदान देता है। वरलक्ष्मी व्रत पूजा विधि लष्मी पूजा के सामान ही होती हैं
वरलक्ष्मी व्रत की कथा | VarLaxmi Vrat Katha in Hindi
वरलक्ष्मी व्रत की कथा एक बार महादेव शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी । इस व्रत को करने से स्त्रियों को सौभाग्य तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है । आज के दिन वर को प्रदान करने वाली वरलक्ष्मी देवी की आराधना करी जाती है । यह व्रत श्रवण मास की पूर्णमासी से पहले आने वाले शुक्रवार के दिन रखा जाता है ।
एक बार मगध देश में कुण्डी नाम का नगर था । इस नगर का निर्माण स्वर्ण से हुआ था । इस नगर में एक स्त्री चारुमती रहती थी । जो कि अपने पति, सास ससुर की सेवा करके एक आदर्श स्त्री का जीवन व्यतीत करती थी । देवी लक्ष्मी चारुमती से बहुत ही प्रसन्न रहती थी । एक रात्रि को स्वप्न में देवी लक्ष्मी ने चारुमती को दर्शन दिए था उसे वरलक्ष्मी व्रत रखने के लिए कहा ।
चारुमती तथा उसके पड़ोस में रहने वाली सभी स्त्रियों ने श्रावण पूर्णमासी से पहले वाले शुक्रवार के दिन दिवि लक्ष्मी द्वारा बताई गयी विधि से वरलक्ष्मी व्रत को रखा । पूजन के पश्चात कलश की परिक्रमा करते ही उन सभी के शरीर विभिन्न स्वर्ण आभूषणों से सज गए । उनके घर भी स्वर्ण के बन गए तथा उनके घर पर गाय, घोड़े, हाथी आदि वाहन आ गए । उन सभी ने चारुमती की प्रशंसा करी क्यूंकि उसने सभी को व्रत रखने को कहा जिससे सभी को सुख समृद्धि की प्राप्ति हुई । कालान्तर में सभी नगर वासियों को इसी व्रत को रखने से सामान समृद्धि की प्राप्ति हो गयी ।
इस वरलक्ष्मी व्रत को रखने से तथा अन्य लोगो को भी बताने से या मात्र इस व्रत की कथा सुनने से ही माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है ।
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